फाइलेरिया के सम्पूर्ण उन्मूलन की प्रतिबद्धता का प्रतीक: राष्ट्रीय फाइलेरिया दिवस

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By Our Correspondent

RANCHI:   दुनिया में तमाम ऐसी बीमारियाँ हैं जिन्हें नेग्लेक्टेड यानि उपेक्षित रोगों की श्रेणी में रखा गया है, जबकि उनमें से कुछ बीमारियाँ समुदाय में स्वास्थ्य के लिए गंभीर चुनौती हैं। इन्ही में से एक बीमारी है, लिम्फेटिक फाइलेरियासिस जिसे आम तौर पर हम फाइलेरिया अथवा हाथीपांव के नाम से जानते हैं। संक्रमित मच्छर द्वारा फैलने वाली यह बीमारी किसी भी उम्र या समुदाय के स्वस्थ व्यक्ति को जीवन भर के लिए दिव्यांग बना सकती  है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) के अनुसार फाइलेरिया दुनिया भर में दीर्घकालिक विकलांगता का दूसरा प्रमुख कारण है।

फाइलेरिया का संक्रमण शरीर के लिम्फैटिक सिस्टम को नुकसान पहुंचाता है और अगर इससे बचाव न किया जाए तो इससे शारीरिक अंगों में असामान्य सूजन होती है। फाइलेरिया के कारण चिरकालिक रोग जैसे; हाइड्रोसील (अंडकोष की थैली में सूजन), लिम्फेडेमा (अंगों की सूजन) व काइलुरिया (दूधिया सफेद पेशाब) से ग्रसित लोगों को अक्सर सामाजिक बहिष्कार का बोझ सहना पड़ता है, जिससे उनकी आजीविका व काम करने की क्षमता भी प्रभावित होती है।

भारत सहित दुनिया भर के 44 देशों के लगभग 88.2 करोड़ लोगों को फाइलेरिया का खतरा बना हुआ है। वर्तमान में भारत के 20 राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों के 339 जिलों के लगभग 74 करोड़ भारतीयों को फाइलेरिया होने का खतरा है।

वैसे तो फाइलेरिया अथवा हाथीपांव होने के बाद इसका कोई इलाज नहीं है परन्तु इसका बचाव काफी आसान है। समुदाय को फाइलेरिया से सुरक्षित रखने के लिए राष्ट्रीय फाइलेरिया उन्मूलन कार्यक्रम के अंतर्गत फाइलेरिया से प्रभावित सभी राज्यों में वर्ष मे दो बार (10 फरवरी और 10 अगस्त) को मास ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन कार्यक्रम संपन्न किया जा रहा है। देश के फाइलेरिया उन्मूलन कार्यक्रम के वर्तमान रणनीति के मुख्य रूप से दो स्तम्भ हैं:

1.         मास ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन (एमडीए) – फाइलेरिया रोधी दवाएँ यानि डी.ई.सी.(डाई -ईथाइल कारबामाईजीन ) और अल्बेंडाज़ोल की वर्ष में एक खुराक द्वारा फाइलेरिया प्रभावित क्षेत्रों में संक्रमण और बीमारी की रोकथाम – इस कार्यक्रम में लाभार्थियों को 2 दवाओं डीईसी और अल्बेंडाज़ोल की निर्धारित खुराक दवा प्रशासकों द्वारा बूथ एवं घर-घर जाकर अपने सामने मुफ्त खिलाई जाती है। ये दवाएं 2 साल से कम उम्र के बच्चों, गर्भवती महिलाओं और गंभीर रूप से बीमार व्यक्तियों को नहीं खिलाई जाती है। विशेषज्ञ बताते हैं कि अगर फाइलेरिया प्रभावित क्षेत्रों के सभी लोगों द्वारा लगातार 5 साल तक फाइलेरिया रोधी दवाओं का साल में केवल 1 बार सेवन किया जाये तो फाइलेरिया से जीवन भर सुरक्षित रहा जा सकता है। फाइलेरिया उन्मूलन कार्यक्रम को और अधिक सफलता से सम्पादित करने के लिए, भारत सरकार ने वर्ष 2018 में आईडीए की शुरुआत की।

इसमें डीईसी और अल्बेंडाज़ोल के साथ आईवरमेंक्टिन दवा को शामिल किया गया। भारत के साथ-साथ अन्य देशों में किए गए अध्ययनों से संकेत मिलता है कि एमडीए में एक तीसरी दवा यानी आइवरमेक्टिन को शामिल करना दो दवा उपचार (डीईसी एवं अल्बेंडाज़ोल) की तुलना में कम समय में माइक्रोफाइलेरिया दर को कम करने के लिए अधिक प्रभावी है।

2.         मोर्बिडिटी मैनेजमेंट एंड डिसेबिलिटी प्रिवेंशन (एम.एम.डी.पी.) यानि रुग्णता प्रबंधन एवं विकलांगता की रोकथाम- फाइलेरिया या हाथीपांव से संक्रमित व्यक्तियों की नि:शुल्क देखभाल एवं इलाज – इस कार्यक्रम में फाइलेरिया मरीजों की बीमारी का प्रबंधन किया जाता है और हाइड्रोसील मरीजों की सर्जरी की जाती है।

फाइलेरिया जैसी गंभीर बीमारी के प्रति समुदाय को जागरूक करने के लिए और लोगों को इस बीमारी से सुरक्षित रखने के लिए हर वर्ष 11 नवम्बर को पूरे देश में राष्ट्रीय फाइलेरिया दिवस मनाया जाता है। इसी क्रम में झारखण्ड में भी आज इस दिवस का आयोजन किया जा रहा है। इस दिवस की सार्थकता के लिए, राज्य के सभी जिलों में फाइलेरिया रोग के सम्पूर्ण उन्मूलन हेतु प्रतिबद्धता के साथ, जनप्रतिनिधियों, अधिकारियों, स्वास्थ्यकर्मियों और समुदाय के लोगों द्वारा फाइलेरिया उन्मूलन कार्यक्रम को जन- आन्दोलन का रूप देकर कार्य किया जा रहा हैं।

इस अवसर पर राज्य कार्यक्रम पदाधिकारी, वेक्टर-जनित रोग नियंत्रण कार्यक्रम, डॉ. बीरेंद्र कुमार सिंह ने बताया कि फाइलेरिया से बचाव के लिए सोने के समय मच्छरदानी का प्रयोग करने एवं घर के आसपास साफ-सफाई रखने की आवश्यकता है। उन्होंने बताया कि घरों के इर्द- गिर्द गंदगी तथा जल-जमाव होने से मच्छरों का प्रकोप बढ़ता है जिससे कई प्रकार की संक्रामक बीमारिया फैलती है। उन्होंने कहा कि फाइलेरिया उन्मूलन अभियान को हमारे स्वास्थ्य कर्मी घर-घर तक लेकर जा रहे हैं,  ताकि इस अभियान में एक भी व्यक्ति ना छूटे। डॉ. बीरेंद्र कुमार सिंह ने बताया कि इससे बचाव के लिए सरकार द्वारा लोगों को मुफ्त में  खिलाई जा रही फ़ाइलेरिया रोधी दवाएं पूरी तरह सुरक्षित है। इन दवाओं को खाली पेट नहीं खाना चाहिए। इन दवाओं का कोई साइड इफेक्ट नहीं है।

 उन्होंने कहा कि किसी मरीज में अगर कोई साइड इफेक्ट होता है तो उन्हें घबराने की आवश्यकता नहीं है, चूँकि किसी व्यक्ति के खून में अगर माइक्रफाइलेरिया है, तो दवा के कारण माइक्रफाइलेरिया नष्ट हो जाता है, जिससे दवा खाने के कुछ समय बाद थोडा चक्कर आना, उल्टी होना या उल्टी जैसा लगना , ये छोटे-मोटे प्रतिकूल प्रभाव हो सकते हैं, जो कुछ समय बाद ठीक हो जाते हैं, और उस व्यक्ति में फ़ाइलेरिया होने की सम्भावना कम हो जाती है। उन्होंने बताया कि फाइलेरिया मुक्त झारखण्ड के लिए अन्तर्विभागीय समन्वय बनाकर प्रयास किये जा रहें हैं और हमें पूरा विश्वास है कि हमारे राज्य से शीघ्र ही फाइलेरिया का पूर्ण रूप से उन्मूलन होगा।

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